नई दिल्ली: क्या आप जानते हैं कि एक रुपये का सिक्का बनाने में उसकी वास्तविक कीमत से अधिक खर्च होता है? यह तथ्य चौंकाने वाला है, लेकिन सच है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, एक रुपये के सिक्के को बनाने में ₹1.11 का खर्च आता है। इसका मतलब है कि सरकार को हर एक रुपये के सिक्के पर 11 पैसे का अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ता है।
एक रुपये के सिक्के की लागत और निर्माण प्रक्रिया
एक रुपये का सिक्का स्टेनलेस स्टील से बनाया जाता है। इसका व्यास 21.93 मिमी, मोटाई 1.45 मिमी और वजन 3.76 ग्राम होता है। इन सिक्कों को भारतीय सरकारी टकसालों (Indian Government Mint) में तैयार किया जाता है, जो मुंबई और हैदराबाद में स्थित हैं।
हालांकि, अन्य सिक्कों की निर्माण लागत भी उनके मूल्य के करीब या उससे कम होती है:
- ₹2 का सिक्का: ₹1.28
- ₹5 का सिक्का: ₹3.69
- ₹10 का सिक्का: ₹5.54
इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि छोटे मूल्यवर्ग के सिक्कों की निर्माण लागत उनके वास्तविक मूल्य से अधिक हो सकती है।
महंगाई और उत्पादन लागत पर प्रभाव
2018 में आरटीआई (RTI) के तहत सामने आई जानकारी के अनुसार, उस समय भी एक रुपये के सिक्के की लागत उसके मूल्य से अधिक थी। 2024 तक महंगाई और कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि ने इन लागतों को और बढ़ा दिया होगा। हालांकि, हालिया आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि उत्पादन लागत में वृद्धि जारी रही होगी।
सिक्कों की घटती मांग
डिजिटल लेन-देन और कैशलेस अर्थव्यवस्था के बढ़ते चलन ने सिक्कों की मांग को कम कर दिया है। उदाहरण के लिए, 2017 में जहां 903 मिलियन एक रुपये के सिक्के बनाए गए थे, वहीं 2018 में यह संख्या घटकर 630 मिलियन रह गई।
सरकार को क्यों उठाना पड़ता है अतिरिक्त खर्च?
सिक्कों और नोटों का निर्माण केवल लेन-देन को सुचारू बनाए रखने के लिए किया जाता है। हालांकि, इनकी उत्पादन प्रक्रिया में कच्चा माल, मशीनरी और श्रम जैसे कारकों पर खर्च होता है। इसके बावजूद सरकार यह सुनिश्चित करती है कि देश में पर्याप्त मात्रा में मुद्रा उपलब्ध हो।
क्या नोट छापने पर भी खर्च अधिक होता है?
सिक्कों की तरह नोट छापने पर भी अलग-अलग लागत आती है। उदाहरण के लिए:
- ₹10 के 1000 नोट छापने में ₹960 का खर्च आता है।
- ₹100 के 1000 नोट छापने में ₹1770 खर्च होता है।
- ₹2000 के एक नोट को छापने पर लगभग ₹4 का खर्च आता था।
यह दर्शाता है कि उच्च मूल्यवर्ग के नोट छापने की लागत उनके मूल्य से काफी कम होती है, जबकि छोटे मूल्यवर्ग के सिक्कों और नोटों पर अधिक खर्च होता है।
भविष्य की संभावनाएं
डिजिटल भुगतान प्रणाली और कैशलेस लेन-देन को बढ़ावा देने से सरकार को सिक्कों और नोटों की उत्पादन लागत कम करने में मदद मिल सकती है। हालांकि, ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में नकदी अभी भी प्रमुख भूमिका निभाती है, इसलिए सरकार को संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा।
1 thought on “एक रुपये कॉइन का मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट कितना होगा?”
Mare pass bhi sika and notes hai