मैदा या ऑल-परपज़ फ्लोर भारतीय रसोई का एक अहम हिस्सा है। चाहे नान हो, समोसा हो या पनीर पकौड़े – इन सभी व्यंजनों में मैदा का इस्तेमाल होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह सफेद, महीन आटा कैसे बनता है? आइए जानते हैं मैदा बनाने की पूरी प्रक्रिया और इससे जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य।
मैदा कैसे बनता है? जानिए पूरी प्रक्रिया
मैदा बनाने के लिए सबसे पहले गेहूं को अच्छी तरह से साफ किया जाता है। फिर इसे पानी में भिगोकर नरम किया जाता है। इसके बाद गेहूं को मशीनों में डालकर पीसा जाता है। पीसने की इस प्रक्रिया में कई चरण होते हैं:
- सबसे पहले गेहूं को ब्रेकर रोल्स नाम की मशीन में डाला जाता है। यहां गेहूं के दाने टूटकर बड़े-बड़े टुकड़ों में बदल जाते हैं।
- इन टुकड़ों को फिर रिडक्शन रोल्स में डाला जाता है जहां वे और भी छोटे हो जाते हैं। इस दौरान गेहूं के छिलके (ब्रान) भी अलग हो जाते हैं।
- अब बचे हुए गेहूं के हिस्से को कई बार सिफ्टर और प्यूरीफायर मशीनों से गुजारा जाता है। इससे मैदा और सूजी अलग-अलग हो जाते हैं।
- आखिर में इस मैदे को एक बार फिर से पीसकर और भी बारीक बना दिया जाता है। इसे ही हम मैदा कहते हैं।
मैदा के बारे में 10 रोचक तथ्य
- मैदा में फाइबर और पोषक तत्व नहीं होते। मैदा बनाने की प्रक्रिया में गेहूं के बाहरी हिस्से निकाल दिए जाते हैं जिनमें फाइबर, विटामिन और मिनरल्स होते हैं। इसलिए मैदा को “एम्प्टी कैलोरीज़” भी कहा जाता है।
- मैदा से बने व्यंजन जल्दी पचते नहीं हैं। मैदे में फाइबर न होने के कारण इससे बनी चीज़ें आंतों में चिपक जाती हैं और देर से पचती हैं। इससे कब्ज़ और पेट फूलने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
- मैदा का ज्यादा सेवन मोटापा बढ़ा सकता है। मैदे में कार्ब्स की मात्रा अधिक होती है जो वजन बढ़ाने का कारण बन सकते हैं। साथ ही इसमें ग्लूटेन भी होता है जो कुछ लोगों के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
- भारत में हर साल 100 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन होता है। इसमें से एक बड़ा हिस्सा मैदा बनाने में इस्तेमाल होता है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है।
- मैदा का इस्तेमाल सिर्फ खाने में ही नहीं होता। इससे कई तरह के गोंद, पेपर और कपड़े पर कलफ भी बनाए जाते हैं। मैदे का उपयोग कई औद्योगिक प्रक्रियाओं में भी किया जाता है।
- मैदे का रंग सफेद होने का कारण ब्लीचिंग है। कई बार मैदे को और सफेद बनाने के लिए उसमें ब्लीचिंग एजेंट मिलाया जाता है। हालांकि यह सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है।
- विश्व में सबसे ज्यादा मैदा का उत्पादन चीन में होता है। चीन हर साल लगभग 100 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन करता है जिसमें से अधिकतर मैदा बनाने में इस्तेमाल होता है।
- मैदे का ज्यादा सेवन डायबिटीज़ का खतरा बढ़ाता है। मैदे से बनी चीज़ों में कार्ब्स की मात्रा अधिक होती है जो ब्लड शुगर को तेजी से बढ़ा सकती हैं। समय के साथ यह डायबिटीज़ का कारण बन सकता है।
- गेहूं के अलावा मैदा चावल और मक्का से भी बनाया जा सकता है। हालांकि गेहूं से बना मैदा सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में चावल और मक्का के मैदे का भी प्रयोग किया जाता है।
- मैदे का इस्तेमाल करके घर पर भी कई चीज़ें बनाई जा सकती हैं। नूडल्स, पास्ता, केक, बिस्किट जैसी कई रेसिपीज़ में मैदा मुख्य सामग्री के रूप में इस्तेमाल होता है। इन्हें घर पर भी आसानी से बनाया जा सकता है।
मैदा और आटे में क्या अंतर है?
मैदा और आटा दोनों ही गेहूं से बनते हैं लेकिन इनमें कुछ मुख्य अंतर हैं:
- मैदा बनाने में गेहूं के बाहरी हिस्से हटा दिए जाते हैं जबकि आटे में पूरा गेहूं पीसा जाता है। इसलिए आटे में फाइबर और पोषक तत्व मौजूद रहते हैं।
- मैदा आटे से ज्यादा बारीक होता है। इसकी वजह से मैदे से बनी चीज़ें मुलायम और हल्की होती हैं जबकि आटे से बनी रोटियां और ज्यादा मोटी होती हैं।
- मैदा का रंग आटे से ज्यादा सफेद होता है। ब्लीचिंग की वजह से मैदे का रंग दूधिया सफेद हो जाता है जबकि आटा थोड़ा भूरा होता है।
- मैदे का स्वाद आटे से हल्का होता है। गेहूं के बाहरी हिस्से हटने से मैदे का स्वाद भी फीका पड़ जाता है जबकि आटे में गेहूं का मूल स्वाद बरकरार रहता है।
क्या मैदा सेहत के लिए नुकसानदायक है?
जैसा कि हमने ऊपर देखा, मैदा बनाने की प्रक्रिया में गेहूं के पोषक तत्व निकल जाते हैं। इसके अलावा मैदे में ग्लूटेन और कार्ब्स की मात्रा भी अधिक होती है। अगर संतुलित मात्रा में लिया जाए तो मैदा नुकसानदायक नहीं होता। लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है:
- मैदे का सेवन सीमित मात्रा में करें। हफ्ते में 2-3 बार से ज्यादा मैदे से बनी चीज़ें न खाएं। इसके बजाय पूरे गेहूं से बनी रोटी या ब्रेड का सेवन करें।
- मैदे से बने व्यंजनों में फाइबर वाली चीज़ें मिलाएं। सब्जियां, साबुत अनाज, बींस आदि मिलाने से पोषक तत्वों की कमी पूरी हो जाएगी।
- तले हुए और मीठे पकवानों से परहेज करें। समोसे, कचोरी, केक, पेस्ट्री जैसी चीज़ों में मैदे के साथ-साथ तेल और चीनी भी अधिक मात्रा में होती है। इनका सेवन कम से कम करें।
- ग्लूटेन के प्रति संवेदनशील लोगों को मैदा नहीं खाना चाहिए। सिलिएक रोग या ग्लूटेन एलर्जी वाले लोगों के लिए मैदा हानिकारक हो सकता है। ऐसे में ग्लूटेन-फ्री विकल्प जैसे बाजरा, ज्वार, रागी का सेवन करना चाहिए।
निष्कर्ष
मैदा भारतीय व्यंजनों का एक अहम घटक है, लेकिन इसका अधिक सेवन सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है। मैदा बनाने की प्रक्रिया में गेहूं के कई पोषक तत्व निकल जाते हैं और इसमें ग्लूटेन व कार्ब्स की मात्रा भी अधिक होती है। हालांकि संतुलित और सीमित मात्रा में मैदा खाया जा सकता है। साथ ही इसके स्वस्थ विकल्पों जैसे पूरे गेहूं के आटे, बाजरे और रागी का इस्तेमाल भी किया जा सकता है।
आपको यह जानकारी कैसी लगी? क्या आप भी मैदा के बारे में कुछ रोचक तथ्य जानते हैं? हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं। और ऐसी ही दिलचस्प जानकारी पाने के लिए हमारे ब्लॉग को फॉलो करना न भूलें!